सरकार का भी फ्री इंटरनेट का दांव

नई दिल्ली : क्या ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों को मोबाइल इंटरनेट पर ऐसी सुविधा दी जा सकती है जिससे वह सरकारी वेबसाइट या दूसरी ऑनलाइन सुविधाएं मुफ्त मिल सके? क्या सरकार इसमें उनकी मदद कर सकती है? मोदी सरकार इसके लिए संभावना तलाश कर रही है। अगर इसके लिए रास्ता तलाशने में सरकार सफल रही तो अगले बजट में वह इस महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा कर सकती है।

सूत्रों के अनुसार, पीएमओ के निर्देश पर टेलिकॉम मिनिस्ट्री इस योजना पर काम रही है। एक अधिकारी ने कहा, 'इसके लिए फंड की कोई कमी नहीं है। दरअसल, सरकार के पास इससे जुड़े फंड को खर्च करने का ही दबाव है। इस योजना के लिए सरकार ने यूनिवर्सल ऑब्लिगेशन फंड से राशि की व्यवस्था करने की योजना बनाई है।' सूत्रों के मुताबिक, सरकार चाहती है कि एक फिक्स समय तक सरकार खुद हर साल ऐसे लोगों को इंटरनेट डेटा फ्री दे जिनके पास इंटरनेट नहीं है। इसमें तमाम सरकारी वेबसाइट खुलेंगे और लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी मिल सकेगी। इसकी भी संभावना तलाश की जा रही है कि क्या योजना के तहत सरकारी वेबसाइट आसानी से खुल सके। सरकार इसके लिए बीएसएनएल से गठजोड़ कर सकती है जो फ्री इंटरनेट देने की सरकारी योजना को अमल कर सके। सरकार का तर्क है कि इसमें कोई कंपनी या वेबसाइट पक्षपात या नेट न्यूट्रलिटी के सिद्धांत के खिलाफ का आरोप नहीं लगा सकती है।
क्या है यूएसओ फंड?
यह एक ऐसा फंड है जो तमाम टेलिकॉम कंपनियों को हर साल अपने लाभ से एक हिस्सा सरकार के पास बने फंड में जमा करना अनिवार्य होता है। 2002 से लेकर 2014 तक इसमें 66 हजार करोड़ रुपये जमा हुए, लेकिन उसमें मात्र करीब 25 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए। सरकार ने पूरे देश में इंटरनेट, ब्रॉडबैंड और मोबाइल के विस्तार से इस फंड का निर्माण किया था। पिछले साल सीएजी ने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि इसमें जमा हजारों करोड़ रुपये का उपयोग सरकार दूसरे मद में कर रही है जबकि इसका उपयोग देश के सुदूर क्षेत्र में मोबाइल, इंटरनेट विस्तार के लिए किया जाना चाहिए। संसद के पिछले सत्र में भी इस फंड के बिना उपयोग के पड़े रहने पर विपक्षी दलों ने चिंता जताई थी। 

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